कांगड़ा के पद्धर में बबूने के फूलों और तुलसी से महक रहा लोक जीवन

ग्रामीण महिलाओं ने हर्बल खेती से लिखी सफलता की कहानी
कांगड़ा जिले की पद्धर पंचायत की फिज़ा में आजकल बबूने के फूल (कैमोमाइल) और काली तुलसी की खुशबू महक रही है। खेतों से उठती जन जीवन महकाने वाली इस सुगंध में ग्राम पंचायत पद्धर की मेहनतकश महिलाओं की सफलता की कहानी घुली है। जो न सिर्फ अपने पैरों पर खड़ी हैं बल्कि आस पास के गांवों की महिलाओं के लिए एक मिसाल भी बनीं हैं। पद्धर और घिरथोली गांवों की इन महिलाओं ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में स्वयं सहायता समूह बनाकर बबूने के फूल और काली तुलसी की हर्बल खेती से रोज़गार का नायाब ज़रिया ढूंढ निकाला है, जिसकी मदद से वे घर के कामों को करने के साथ ही परिवार की आर्थिक रूप से भी सहायता कर रही हैं। 6-6 महीने के साइकल में की जाने वाली ये खेती नवंबर से मई और फिर मई से नवंबर के पीरियड में की जाती है।
अपनी जमीन के बीघा भर में हर्बल खेती कर रहीं वैष्णो स्वयं सहायता समूह की एक सदस्य आशा देवी बताती हैं कि ये खेती पूरी तरह प्राकृतिक है। इसमें केमिकल मिली खाद का प्रयोग नहीं किया जाता। जंगली जानवर भी इसे नुकसान नहीं पहुंचाते। हां…कीड़ा लगने पर खट्टी छाछ का छिड़काव या प्राकृतिक तरीके से उपचार किए जाते हैं। वे बताती हैं कि उन्होंने बबूने के फूल और काली तुलसी के साथ कुछ पौधे अश्वगंधा, जटामासी तथा चिया सीड के भी लगाए हैं। उनकी भी बाजार में अच्छी खासी डिमांड है।
बबूने के फूल और काली तुलसी के स्वास्थ्य के लिए अनेक फायदे हैं। इन्हें ग्रीन टी बनाने में उपयोग में लाया जाता है, जो अनिद्रा, पेट और लीवर की दिक्कतों तथा बीपी और शूगर जैसे विकारों को नियंत्रित करने में रामबाण है। इसके अलावा इनका सौंदर्य प्रसाधनों में भी इस्तेमाल होता है।