सूरजकुण्ड मेले में पहाड़ी गुच्छी के स्वाद की धमक

हरियाणा के फरीदाबाद में अरावली की वादियों में चल रहे 36वें अंतरराष्ट्रीय सूरजकुण्ड मेले के फूड स्टॉलों पर इस बार बड़ी संख्या में लोग पहुंच कर हिमाचल के ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में पैदा होने बाली पहाड़ी गुच्छी के व्जयंनों का आनन्द ले रहे हैं। कुल्लू के उद्यमी आयुष सूद द्वारा कुल्लू मनाली, धर्मशाला, चम्बा, मण्डी और कांगड़ा के ऊँचे पर्वतीय स्थलों पर तेज बिजली की चमक से प्रकृतिक रूप में पैदा हो रही पहाड़ी गुच्छी को एकत्र करके संगठित रूप से “हिली बास्केट” नाम के विशिष्ट ब्रांड के रूप में बेचने की पहल की गई है ताकि राष्ट्रीय मार्किट में पहाड़ी गुच्छी के विशिष्ट स्वाद, सुगन्ध के साथ ही सेहत के लिए फायदेमंद पक्ष को भी अनायास उजागर किया जा सके। इसका सेवन कोलोस्ट्रोल को कम करके शरीर में ऊर्जा के संचार को बढ़ाता है। सामान्यता यह सब्ज़ी बसन्त ऋतू में प्रकृतिक रूप में जंगलों में उगती है। गुच्छी सामान्यता सूखे पेड़ों के नीचे पाई जाती है। गुच्छी की व्यावसायिक खेती अभी तक शुरू नहीं हो सकी है तथा इसकी पैदावार मुख्यत: प्रकृतिक या जंगली ही दर्ज की जाती है। गुच्छी को जंगलों से इकट्ठा करने के बाद इन्हें प्रकृतिक धूप में सुखाया जाता है ताकि इनके वास्तविक स्वरुप को संरक्षित रखा जा सके। इसे जमीन में उगने के एक हफ्ते में ही इकठा करना पड़ता है अन्यथा यह खराब हो जाती है। इसे प्रकृतिक रूप से सूखाकर पैक किया जाता है तथा दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और बंगलौर जैसे महानगरों में भेजा जाता है जहाँ औसतन 50,000 रुपए प्रति किल्लो की दर से बेचा जाता है।

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